१४.२२ – प्रकाशं च प्रवृत्तिं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

श्री भगवान् उवाच

प्रकाशं  च प्रवृत्तिं  च मोहमेव च पाण्डव  |
न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति  ||

पद पदार्थ

श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले

पाण्डव – हे पाण्डुपुत्र!

(आत्मा के अलावा अन्य विषयों में )
प्रकाशं च – स्पष्ट ज्ञान (जो सत्वगुण का प्रभाव है)
प्रवृत्तिं च – प्रयास (जो रजोगुण का प्रभाव है)
मोहम् एव च ​​- भ्रम (जो तमोगुण का प्रभाव है)
संप्रवृत्तानि – जो प्राप्त करता है (अनजाने में, या साधन के रूप में)
न द्वेष्टि – (जो तीन गुणों को पार कर गया है) वह घृणा नहीं करता।
निवृत्तानि – जो उससे अलग हो जाती है (जानबूझकर या साधन के रूप में)
न काङ्क्षति – [वह]उस वस्तु की इच्छा नहीं करता है

सरल अनुवाद

श्री भगवान बोले , हे पाण्डुपुत्र! जो तीन गुणों को पार कर गया है,(आत्मा के अलावा अन्य विषयों  में), स्पष्ट ज्ञान (जो सत्वगुण का प्रभाव है), प्रयास (जो रजोगुण का प्रभाव है) और भ्रम (जो कि तमोगुण का प्रभाव है) से वह घृणा नहीं करता है, जिसे वह (अनजाने में, या एक साधन के रूप में) प्राप्त करता है। वह उस वस्तु की इच्छा नहीं करता जो उससे (जानबूझकर या साधन के रूप में) अलग हो जाती है ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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