१४.२४ – समदु: खसुख: स्वस्थ:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

<< अध्याय १४ श्लोक २३

श्लोक

समदु:खसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चन: |
तुल्यप्रियाप्रियो धीर: तुल्यनिन्दात्मसंस्तुति: ||

पद पदार्थ

सम दु:ख सुख:- (वह) जो दुःख और सुख को समान समझता है
स्वस्थ:- जो केवल आत्मा (स्वयं) में ही लगा हुआ है
सम लोष्टाश्म काञ्चन: – जो मिट्टी, पत्थर या सोने के खंड को समान मानता है
तुल्य प्रिय अप्रिय:- वांछनीय और अवांछनीय पहलुओं को समान मानता है
धीर:- जो शरीर और आत्मा के बीच अंतर करने में सक्षम है
तुल्य निन्दात्म संस्तुति: – जो निंदा और प्रशंसा को समान मानता है

सरल अनुवाद

जो दुःख और सुख को समान समझता है, जो केवल आत्मा (स्वयं) में ही लगा रहता है, जो मिट्टी, पत्थर या सोने के खंड को समान मानता है, जो वांछनीय और अवांछनीय पहलुओं को समान मानता है, जो शरीर और आत्मा के बीच अंतर करने में सक्षम है, जो निंदा और प्रशंसा को समान मानता है…. [अगले श्लोक में जारी]

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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