१४.२६ – माम् च योऽव्याभिचारेण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

माम् च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते |
स गुणान्  समतीत्यैतान्  ब्रह्मभूयाय कल्पते ||

पद पदार्थ

य:- जो व्यक्ति
मां – मुझे
अव्यभिचारेण भक्ति योगेन च – अन्य देवताओं और लाभों पर ध्यान केंद्रित न करते (अंगों सहित) भक्ति योग से
सेवते – पूजा करता है
स:- वह
एतान् गुणान् – ये तीन गुणों से (सत्व, रजस, तमस)
समतीत्य – परे होकर
ब्रह्मभूयाय कल्पते – ब्रह्म के समान होने के योग्य हो जाता है

सरल अनुवाद

जो व्यक्ति ,अन्य देवताओं और लाभों पर ध्यान केंद्रित न करते (अंगों सहित) भक्ति योग से मेरी पूजा करता है, वह इन तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) से परे होकर , ब्रह्म के समान  होने के योग्य हो जाता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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