१४.३ – मम योनिर् महद्ब्रह्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।।

पद पदार्थ

भारत – हे भरतकुल के वंशज!
योनि: – इस सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण है
मम – मेरा
महत् – महान
ब्रह्म यत् – मूल प्रकृति (जिसे ब्रह्मं कहा जाता है )
तस्मिन् – उसमें
गर्भं – गर्भावस्था (संपूर्ण चेतनाओं के संग्रह के रूप में)
अहं दधामि – मैं बोता हूँ
तत: – इन दोनों (पदार्थ और जीवात्मा) के संयोग से
सर्व भूतानां – ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यन्त समस्त प्राणियों
संभवः – उत्पत्ति
भवति – होती है

सरल अनुवाद

हे भरतकुल के वंशज! मैं उस महान मूल प्रकृति में (जिसे ब्रह्मं कहा जाता है ; और जो इस सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण है) गर्भावस्था (संपूर्ण चेतनाओं के संग्रह के रूप में) बोता हूँ; इन दोनों (पदार्थ और जीवात्मा) के संयोग से (ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यन्त) समस्त प्राणियों की उत्पत्ति होती है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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