१५.१ – ऊर्ध्वमूलम् अधश्शाखम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

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श्लोक

श्री भगवान उवाच

ऊर्ध्वमूलम्  अधश्शाखम्  अश्वत्थं प्राहुरव्ययम् |
छन्दांसि  यस्य पर्णानि यस्तं  वेद स वेदवित् ||

पद पदार्थ

श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोले
(यम्) अश्वत्थं – वह संसार जो एक पीपल के वृक्ष की तरह है
उर्ध्व मूलम् – जिसकी जड़ ऊपर हो
अधश्शाखम् – नीचे अच्छी तरह फैली हुई शाखाएँ होना
अव्ययम् – अविनाशी (अस्तित्व का शाश्वत सतत प्रवाह के कारण)
यस्य छन्दांसि पर्णानि – पत्तों के रूप में वेद वाक्य (पवित्र ग्रंथों की बातें) होना
प्राहु:- ऐसा कहा गया है (वेद द्वारा)
तं – उस वृक्ष को
य: वेद – जो जानता है
स: वेदवित् -वही वेदों का ज्ञाता है

सरल अनुवाद

श्री भगवान बोले – जो उस संसार को  एक पीपल के वृक्ष की तरह  जानता है,  जिसकी जड़  ऊपर है और शाखाएँ नीचे अच्छी तरह से फैली हुई है, जो अविनाशी है (अस्तित्व का शाश्वत सतत प्रवाह के कारण), जिसमें पत्तों के रूप में वेद वाक्य (पवित्र ग्रंथों की बातें) है, ऐसा (वेद द्वारा) कहा गया है, वही वेद का ज्ञाता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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