श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
न तद् भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: |
यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ||
पद पदार्थ
यद् गत्वा – जहाँ पहुँचने के बाद
न निवर्तन्ते – कोई वापसी नहीं है (जो वहाँ पहुँच गए ,उनके लिए संसार में)
तद – जीवात्मा का वह प्रकाश
सूर्य: न भासयते – सूर्य से प्रकाशित नहीं होता है
शशाङ्क: न (भासयते) – चंद्रमा द्वारा प्रकाशित नहीं होता है
पावक: न (भासयते) – अग्नि से प्रकाशित नहीं होता है
तद् – वह
परमं धाम – सर्वोच्च प्रकाश
मम- मेरा है
सरल अनुवाद
जीवात्मा का वह प्रकाश,जहाँ पहुँचने के बाद, (जो वहाँ पहुँच गए ,उनके लिए संसार में) कोई वापसी नहीं है, सूर्य, चंद्रमा और अग्नि से प्रकाशित नहीं होता है, वह सर्वोच्च प्रकाश मेरा है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/15-6/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org