श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणम् एव च |
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयान् उपसेवते ||
पद पदार्थ
अयम् – यह आत्मा
श्रोत्रं – कान
चक्षु: – आँखें
स्पर्शनं च – शरीर
रसनं – जीभ
घ्राणम् एव च - नाक, आदि ये पाँच इन्द्रियों
मन: च – मन (जो इन्हें नियंत्रित करता है)
अधिष्ठाय – उन्हें उनके संबंधित विषयों जैसे श्रवण, दृष्टि, स्पर्श, स्वाद और गंध में संलग्न करके
विषयान् – उन विषयों का
उपसेवते – आनंद लेती है
सरल अनुवाद
यह आत्मा अपनी कान, आंख, शरीर, जीभ और नाक आदि ये पाँच इन्द्रियों को उनके संबंधित विषयों जैसे श्रवण, दृष्टि, स्पर्श, स्वाद और गंध और मन (जो इन्हें नियंत्रित करता है) में संलग्न करके, उन विषयों का आनंद लेती है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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