श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
तानहं द्विषतः क्रूरान् संसारेषु नराधमान् |
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ||
पद पदार्थ
द्विषत: – मेरे प्रति द्वेष रखते हैं (जैसा कि पहले बताया गया है)
क्रूरान् – क्रूर हैं
नराधमान् – मनुष्यों में नीच हैं
अशुभान् – अशुभ हैं
तान् – वे (राक्षसी लोग)
अहं – मैं
अजस्रम् – निरंतर
संसारेषु – जन्मों में (जिसमें बार-बार जन्म, मृत्यु, वृद्धत्व और बीमारी है)
(आगे, उसमें)
आसुरीषु एव योनिषु – वो भी आसुरी योनियों में
क्षिपामी – मैं उनको धकेलता हूँ
सरल अनुवाद
जो (राक्षसी लोग) मेरे प्रति द्वेष रखते हैं (जैसा कि पहले बताया गया है), क्रूर हैं, मनुष्यों में नीच हैं, अशुभ हैं, निरंतर मैं उनको जन्मों में (जिसमें बार-बार जन्म, मृत्यु, वृद्धत्व और बीमारी है) वो भी आसुरी योनियों में, धकेलता हूँ |
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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