१६.६ – द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १६

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श्लोक

द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।।

पद पदार्थ

पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
अस्मिन् लोके – [भौतिकवादी] कर्मों की इस दुनिया में
भूत सर्गौ – प्राणियों की रचना
दैव: – देवता से संबंधित
आसुर एव च – असुर से संबंधित
द्वौ – दो प्रकार
दैव: – देवताओं के आचरण
विस्तरशः प्रोक्त: – विस्तृत रूप से समझाया गया था
आसुरं – असुरों के आचरण
मे – मेरे द्वारा
श्रृणु – सुनो!

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! [भौतिकवादी] कर्मों की इस दुनिया में प्राणियों की रचना दो प्रकार की है – देवता और असुर। देवताओं के आचरण को विस्तृत रूप से [मेरे द्वारा] समझाया गया था |अब मुझसे असुरों के आचरण के बारे में सुनो!

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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