श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहेतुकम्।।
पद पदार्थ
ते – वे राक्षसी लोग
जगत् – यह जगत्
असत्यम् अप्रतिष्ठम् अनीश्वरम् आहु: – नहीं कहते कि, ” ब्रह्म से व्याप्त है, ब्रह्म द्वारा ही धारण किया जाता है तथा ब्रह्म द्वारा ही नियंत्रित होता है ” ;
अपरस्पर सम्भूतं – “जो (स्त्री-पुरुष के) परस्पर संयोग से उत्पन्न न हुई हो
किम् अन्यत् ( इति आहु:) – क्या ऐसी कोई वस्तु है ?” – वे कहते हैं ;
जगत् काम हेतुकं (आहु:) – (अतः) जगत् काम के आधार पर ही विद्यमान है – वे कहते हैं
सरल अनुवाद
वे राक्षसी लोग यह नहीं कहते कि, “यह जगत् ब्रह्म से व्याप्त है, ब्रह्म द्वारा ही धारण किया जाता है तथा ब्रह्म द्वारा ही नियंत्रित होता है” ; वे कहते हैं कि, “क्या ऐसी कोई वस्तु है जो (स्त्री-पुरुष के) परस्पर संयोग से उत्पन्न न हुई हो? (अतः) जगत् काम के आधार पर ही विद्यमान है”।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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