श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते |
यष्टव्यमेवेति मन: समाधाय स सात्त्विक: ||
पद पदार्थ
अफलाकाङ्क्षिभि: – उन लोगों द्वारा जिन्हें परिणाम की कोई अपेक्षा नहीं है
विधिदृष्ट: – जैसे शास्त्र द्वारा निर्धारित है
यष्टव्यमेव इति – यह सोचकर कि यज्ञ अवश्य करना चाहिए (क्योंकि ऐसा यज्ञ भगवान की पूजा का हिस्सा है)
मन: समाधाय – दृढ़ मन से
यः यज्ञ- वह यज्ञ
इज्यते – किया जाता है
स:-ऐसे यज्ञ
सात्त्विक: – एक सात्विक यज्ञ है (सत्वगुण में यज्ञ)
सरल अनुवाद
जो यज्ञ उन लोगों द्वारा किया जाता है जिन्हें परिणाम की कोई अपेक्षा नहीं है, दृढ़ मन से, यह सोचकर कि यज्ञ अवश्य करना चाहिए (क्योंकि ऐसा यज्ञ भगवान की पूजा का हिस्सा है) जैसे शास्त्र द्वारा निर्धारित है, वह एक सात्विक (सत्त्वगुण )यज्ञ है |
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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