१७.१८ – सत्कार मान पूजार्थं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १७

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श्लोक

सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्।
क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्।।

पद पदार्थ

सत्कार मान पूजार्थं – जो सम्मान, प्रशंसा और पूजा पाने के लिए
दम्भेन च एव – तथा दिखावे के लिए
यत् तप: क्रियते – तप किया जाता है
तत् – वह तपस्या
इह – इस संसार में
राजसं प्रोक्तं – कहा जाता है कि वह रजोगुण से उत्पन्न होता है

(ऐसी तपस्या)

(दृश्यमान परिणाम के आधार पर) चलं – अस्थिर
अध्रुवं – अनित्य

सरल अनुवाद

जो तप सम्मान, प्रशंसा और पूजा पाने के लिए तथा दिखावे के लिए किया जाता है, कहा जाता है कि वह इस संसार में रजोगुण से उत्पन्न होता है ; (ऐसी तपस्या) (दृश्यमान परिणाम के आधार पर) अस्थिर और अनित्य है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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