१७.१९ – मूढग्राहेणात्मनो यत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १७

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श्लोक

मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।।

पद पदार्थ

मूढग्राहेण – मूर्ख व्यक्तियों की प्रबल इच्छा के कारण
आत्मन: पीडया – स्वयं को कष्ट देने
परस्य उत्सादनार्थं वा – दूसरों को कष्ट देने
यत् तपः क्रियते – जो तपस्या की जाती है
तत् – वह तपस्या
तामसम् उदाहृतम् – तमो गुण (अज्ञान) से उत्पन्न तप कहा जाता है

सरल अनुवाद

स्वयं को तथा दूसरों को कष्ट देने की प्रबल इच्छा के कारण मूर्ख व्यक्ति जो तपस्या करते हैं, वह तमो गुण (अज्ञान) से उत्पन्न तप कहा जाता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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