श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श्रृणु।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय।।
पद पदार्थ
धनञ्जय – हे अर्जुन!
बुद्धे: – बुद्धि (विश्लेषण करने और दृढ़ता से निर्णय लेने की)
धृते: च एव – दृढ़ निश्चय (आरंभ किए हुए कर्म में विघ्न आने पर भी दृढ़ रहना)
गुणत: – त्रिगुणात्मक गुणों के आधार पर
त्रिविधं भेदं – तीन भेदों
पृथक्त्वेन प्रोच्यमानं – मेरा व्यक्तिगत विवेचन
अशेषेण श्रृणु – (जैसा है वैसा ही) सुनो
सरल अनुवाद
हे अर्जुन! त्रिगुणात्मक गुणों के आधार पर बुद्धि के तीन भेदों (विश्लेषण करने और दृढ़ता से निर्णय लेने की) तथा दृढ़ निश्चय (आरंभ किए हुए कर्म में विघ्न आने पर भी दृढ़ रहना) के विषय में मेरा व्यक्तिगत विवेचन (जैसा है वैसा ही) सुनो।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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