श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
न च तस्मान् मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम: |
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ||
पद पदार्थ
भुवि – इस संसार में
मनुष्येषु – मनुष्यों में
तस्मात् अन्य: कश्चित – इस शास्त्र को समझाने वाले के अतिरिक्त
मे – मुझे
प्रियकृत्तम: न च – कोई और अधिक प्रिय सेवा करने वाला नही है
तस्मात् अन्य: – उसके अतिरिक्त
मे – मुझे
प्रियतर: भविता न च – भविष्य में भी उससे अधिक प्रिय कोई और नहीं होगा
सरल अनुवाद
इस संसार में मनुष्यों में इस शास्त्र को समझाने वाले के अतिरिक्त मुझे कोई और अधिक प्रिय सेवा करने वाला नहीं है, तथा भविष्य में भी उसके अतिरिक्त अधिक प्रिय कोई और नहीं होगा ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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