२.३७ – हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<< अध्याय २ श्लोक ३६

श्लोक

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
तस्माद् उत्तिष्ठ  कौन्तेय युध्दाय  कृत निश्चयः ॥

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुंतीपुत्र!
हतो वा – यदि मारे गए ( धार्मिक युद्ध में)
स्वर्गं – मुक्ति
प्राप्स्यसि – तुम प्राप्त करोगे;
जित्वा – यदि तुम युद्ध में जीत गए
महीम् – पृथ्वी
भोक्ष्यसे – तुम आनंद लोगे;
तस्मात् – इसलिये
युद्धाय – लड़ने के लिए
कृत निश्चयः – दृढ़ मन से
उत्तिष्ट: – उठो

सरल अनुवाद

हे कुंतीपुत्र! यदि तुम इस धर्म युद्ध में मारे जाते हो , तो तुम मुक्ति प्राप्त करोगे । यदि तुम युद्ध में जीत जाते हो , तो तुम पृथ्वी का आनंद लोगे। इसलिए लड़ने के लिए दृढ़ मन से उठो।

टिपण्णी: स्वर्ग को उपनिषद जैसे अन्य प्रमाणों में मुक्ति के रूप में समझाया गया है, और कृष्ण इस अध्याय में मुक्ति की व्याख्या कर रहे हैं, इसलिए यहाँ स्वर्ग को मुक्ति ही मानना चाहिए।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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