३.१४ – अन्नाद् भवन्ति भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ : कर्मसमुद्भवः ॥

पद पदार्थ

अन्नाद् – भोजन से
भूतानि – देव , मनुष्य  आदि सभी प्राणी
भवन्ति – निर्मित;
पर्जन्यात्- वर्षा से
अन्न संभव: (भवति) – भोजन का उत्पादन होता है
यज्ञात् – यज्ञ से
पर्जन्य – वर्षा
भवति – होती  है
यज्ञ:- आहुति
कर्मसमुद्भव: (भवति) – कर्म से पैदा होता है (धार्मिक कार्यों)

सरल अनुवाद

देव , मनुष्य, आदि सभी प्राणी भोजन से निर्मित हुए हैं; भोजन का निर्माण वर्षा से होता है; यज्ञों के फलस्वरूप वर्षा होती है; यज्ञ  का जन्म कर्म (धार्मिक कार्यों) से होता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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