श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अर्जुन उवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥
पद पदार्थ
अर्जुन उवाच – अर्जुन कहा
वार्ष्णेय – हे कृष्ण , वृष्णिवंशी !
अयं – वह मनुष्य जो ज्ञान योग करने का प्रयत्न करता है
अनिच्छन्नपि – लौकिक सुखों में रूचि न होते हुए भी
केन प्रयुक्त: – किस कारण से उत्तेजित होकर
बलात् नियोजितः इव – जैसे उसके इच्छा के विरुद्ध विवश किया हो
पापं – लौकिक सुखों में लगाव का पाप
चरति – कर रहा है ?
सरल अनुवाद
अर्जुन ने पूछा – हे कृष्ण , वृष्णिवंशी ! किस कारण से उत्तेजित होकर, वह मनुष्य जो ज्ञान योग करने का प्रयत्न करता है , जो लौकिक सुखों में रूचि न होते हुए भी, लौकिक सुखों में लगाव का पाप कर रहा है, जैसे उसके इच्छा के विरुद्ध उसे विवश किया हो ?
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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