श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥
पद पदार्थ
इन्द्रियाणि – दस इन्द्रियाँ ( पॉँच कर्मेन्द्रियाँ और पॉँच ज्ञानेन्द्रियाँ )
पराणि – मूल कारण हैं ( ज्ञान का अवरोध करने में )
अहु: – कहा जाता है कि
इन्द्रियेभ्यः – इन्द्रियों से भी अधिक
मनः – मन
परं (अहु:) – कहा जाता है कि बहुत बड़ा है
मनसस्तु – मन से भी बड़ा
बुद्धि: – अटल दृढ़ ( लौकिक सुखों में आनंद लेने का )
परा – और भी बड़ा है
य: तु बुद्धेः परत: – उस अटल दृढ़ से भी जो बड़ा है
स: ( काम: ) – वो वासना ही है
सरल अनुवाद
कहा जाता है कि दस इन्द्रियाँ ( पॉँच कर्मेन्द्रियाँ और पॉँच ज्ञानेन्द्रियाँ ) ही मूल कारण हैं ( ज्ञान का अवरोध करने में ) ; इन्द्रियों से भी बड़ा कारण है मन ( ज्ञान का अवरोध करने में ) ; मन से भी बड़ा कारण है अटल दृढ़ ( लौकिक सुखों में आनंद लेने का ) और उस अटल दृढ़ से भी जो बड़ा है वो वासना ही है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/3-42/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org