श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ॥
पद पदार्थ
एते सर्वे अपि – ये सभी कर्म योगी जो दैव यज्ञ से लेकर प्राणायाम तक उपर्युक्त गतिविधियों में लगे हुए हैं
यज्ञ विदा: – वे लोग जो नित्य नैमित्तिक कर्म (दैनिक और विशिष्ट अवसरों से संबंधित गतिविधियों ) को जानते हैं और अभ्यास करते हैं, जिसमें पंच महा यज्ञ भी सम्मिलित है
यज्ञक्षपितकल्मषाः – ऐसे यज्ञों का पालन करने से उनके पाप नष्ट हो जाते हैं
सरल अनुवाद
ये सभी कर्म योगी, जो दैव यज्ञ से लेकर प्राणायाम तक उपरोक्त गतिविधियों में लगे हुए हैं, वे जो पंच महा यज्ञ सहित नित्य नैमित्तिक कर्म (दैनिक और विशिष्ट अवसरों से संबंधित गतिविधियाँ) को जानते हैं और अभ्यास करते हैं, ऐसे यज्ञों का पालन करने से उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/4-30
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org