४.३६ – अपि चेदसि पापेभ्यः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।
सर्वं  ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं  सन्तरिष्यसि ॥ 

पद पदार्थ

सर्वेभ्य:पापेभ्य: – सभी पापियों से
पापकृत्तमः: अपि चेत् असि – भले ही तुम बड़े पापी हो
सर्वं वृजिनं – वे सभी पापों के सागर 
ज्ञानप्लवेन एव – स्वयं के बारे में ज्ञान की नाव के साथ
संतरिष्यसि – पार कर लोगे 

सरल अनुवाद

भले ही तुम  सभी पापियों से भी बड़े पापी हो, तुम  स्वयं के बारे में ज्ञान की नाव से उन सभी पापों के सागर को पार कर लोगे।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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