४.४ – अपरं भवतो जन्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत:।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।।

पद पदार्थ

अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा
भवत: जन्म – तुम्हारा जन्म
अपरं – बाद में ( काल के अनुसार )
विवस्वत: जन्म – सूर्य के जन्म
परं – पहले है ( काल के अनुसार )

( ऐसे होते हुए )
त्वं – तुम
आदौ – मन्वन्तर के शुरुआत में
प्रोक्तवान – सिखाया था ( सूर्य को )
इति एतत – ऐसे विरोधात्मक सिध्दांत
कथं विजानीयां – कैसे पहचानूंगा ( कि सत्य है ) ?

सरल अनुवाद

अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा – तुम्हारा जन्म बाद में ( काल के अनुसार ) है और सूर्य का जन्म पहले ( काल के अनुसार ) है ; ऐसे होते हुए मैं कैसे पहचानूंगा ( कि सत्य है ) कि तुमने सूर्य को मन्वन्तर के शुरुआत में सिखाया था, क्योंकि यह सिध्दांत ( तुमसे बहुत ही पहले जन्म लिए किसी को तुमने सिखाया था ) विरोधात्मक है ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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