५.२५ – लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

<< अध्याय ५ श्लोक २४

श्लोक

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणम् ऋषय: क्षीणकल्मषा: |
छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: ||

पद पदार्थ

छिन्नद्वैधा – [ गर्मी – सर्दी इत्यादि ] जैसे जोड़ियों से मुक्त होकर
यतात्मान: – अनन्य रूप से आत्मा पर ध्यानकेंद्रित मन के साथ
सर्व भूत हिते रता: – सभी प्राणियों के हित की प्रार्थना करते हुए
ऋषय: – वो कर्म योगी जो आत्म साक्षात्कार [आत्मा का सच्चा दर्शन ] का अभ्यास करते हैं
क्षीण कल्मषा: – सभी पापों ( जो आत्म साक्षात्कार में बाधा हो ) से मुक्त होकर
ब्रह्म निर्वाणं – आत्मानंद का परम सुख
लभन्ते – प्राप्त करते हैं

सरल अनुवाद

वो कर्म योगी जो [ गर्मी – सर्दी इत्यादि जैसे ] जोड़ियों से मुक्त होकर, अनन्य रूप से आत्मा पर ध्यानकेंद्रित मन के साथ, सभी प्राणियों के हित की प्रार्थना करते हुए, आत्म साक्षात्कार [आत्मा का सच्चा दर्शन ] का अभ्यास करते हैं, वे सभी पापों ( जो आत्म साक्षात्कार में बाधा हो ) से मुक्त होकर आत्मानंद का परम सुख प्राप्त करते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ५ श्लोक २६

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/5-25/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org