५.४ – सान्ख्ययोगौ पृथग्बालाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

सान्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥

पद पदार्थ

सांख्य योगौ – ज्ञान योग और कर्म योग
पृथक – भिन्न (परिणामों में)
बाला:- मूर्ख
न पंडिता:- पूर्ण ज्ञान से रहित
प्रवदन्ति – कहते हैं 
उभयो:- दोनों में
एकम् अपि – केवल एक
सम्यक अस्थिता:- दृढ़ता  से पकड़ना
(उभयो:) फलम् – दोनों का परिणाम [जो एक ही हैं – आत्मबोध]
लभते – प्राप्त करता है

सरल अनुवाद

जो लोग मूर्ख हैं, पूर्ण ज्ञान से रहित हैं, कहते हैं कि ज्ञान योग और कर्म योग के अलग-अलग परिणाम होते हैं; यदि कोई उनमें से किसी एक को दृढ़ता से पकड़ता है, तो उसे दोनों का फल [जो एक ही है – आत्म साक्षात्कार] प्राप्त होता है ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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