६.१३ – समं कायशिरोग्रीवम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ६

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श्लोक

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: |
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ||

पद पदार्थ

काय शिरो ग्रीवं समं – शरीर, सिर और गर्दन को सीधा रखके
अचलं – बिना कोई संचलन के
स्थिर: – अटल
धारयन् – स्थापित कर
दिशश्च अनवलोकयन् – किसी भी दिशा में बिना इधर उधर देखे
स्वं नासिकाग्रं सम्प्रेक्ष्य – अपनी नाक की नोक पर ध्यान केंद्रित करते हुए

सरल अनुवाद

शरीर, सिर और गर्दन को सीधा रखके , आसन को दृढ़ और अचल बनाए , किसी भी दिशा में बिना इधर उधर देखे, अपनी नाक की नोक पर ध्यान केंद्रित करते हुए [ अगले श्लोक में अनुवर्ती ]…..

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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