श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: |
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ||
पद पदार्थ
काय शिरो ग्रीवं समं – शरीर, सिर और गर्दन को सीधा रखके
अचलं – बिना कोई संचलन के
स्थिर: – अटल
धारयन् – स्थापित कर
दिशश्च अनवलोकयन् – किसी भी दिशा में बिना इधर उधर देखे
स्वं नासिकाग्रं सम्प्रेक्ष्य – अपनी नाक की नोक पर ध्यान केंद्रित करते हुए
सरल अनुवाद
शरीर, सिर और गर्दन को सीधा रखके , आसन को दृढ़ और अचल बनाए , किसी भी दिशा में बिना इधर उधर देखे, अपनी नाक की नोक पर ध्यान केंद्रित करते हुए [ अगले श्लोक में अनुवर्ती ]…..
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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