६.१२ – तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ६

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श्लोक

तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय: |
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ||

पद पदार्थ

तत्र आसने – उस बैठक पर
उपविश्य – बैठकर
मन: – मन को
एकाग्रं कृत्वा – एकल-केंद्रित रखकर
यत चित्तेन्द्रिय क्रिय: – मन और इन्द्रियों के कर्मों पर नियंत्रण पाकर
आत्म विशुद्धये – सांसारिक बंधन से मुक्त होकर
योगं युञ्ज्यात् – आत्मदर्शन में संलग्न होना चाहिए

सरल अनुवाद

उस बैठक [ पहले श्लोक में समझाया गया था ] पर बैठकर , मन को एकल-केंद्रित रखकर, मन और इन्द्रियों के कर्मों पर नियंत्रण पाकर , सांसारिक बंधन से मुक्त होने के लिए , आत्मदर्शन में संलग्न होना चाहिए |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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