६.१४ – प्रशान्तात्मा विगतभी:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ६

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श्लोक

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित: |
मन: संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर: ||

पद पदार्थ

प्रशान्तात्मा – शांत मन के साथ
विगतभी: – निर्भय होकर
ब्रह्मचारि व्रते स्थित: – ब्रह्मचर्य का पालन करते
मन: संयम्य – मन को नियंत्रित करके
मच्चित्त: – मुझपर मनन करते हुए
युक्त: – सतर्क रहकर
मत्पर: आसीत – वह पूरी तरह मुझमें व्यस्त रहें

सरल अनुवाद

[ पहले श्लोक से अनुवर्ती ] शांत मन के साथ , निर्भय होकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए , मन को नियंत्रित करके, मुझपर मनन करते हुए, सतर्क रहकर , वह पूरी तरह मुझमें व्यस्त रहें |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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