श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
तं विद्याद् दु:खसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् |
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ||
पद पदार्थ
तं – उस स्थिति
दु:ख संयोग वियोगं – दुःख के कोई निशान का विपरीत
योग सञ्ज्ञितं – योग नाम से जाना जाता है
विद्याद् – पहचानो
स: योग: – ऐसा योग
निश्चयेन – निश्चित रूप से
अनिर्विण्ण चेतसा – वह योगी जिसका मन प्रसन्न हो
योक्तव्य: – निभाना चाहिए
सरल अनुवाद
पहचानो कि वह स्थिति जो दुःख के कोई निशान से विपरीत है , उसको योग नाम से जाना जाता है | ऐसे योग को वह योगी जिसका मन प्रसन्न हो, निश्चित रूप से निभाना चाहिए |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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