श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सङ्कल्पप्रभवान् कामांस् त्यक्त्वा सर्वानशेषतः ।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः ॥
पद पदार्थ
सङ्कल्प प्रभवान् – जो किसी के ममकार (स्वामित्व, स्वयं को स्वतंत्र मानना) के परिणामस्वरूप होता है
सर्वान् कामान् – सभी इच्छुक वस्तुएँ
अशेषतः (च) मनसा एव त्यक्त्वा – उन्हें पूरी तरह से मन में छोड़ देना
समन्ततः – ऐसे सभी इच्छाओं से
इंद्रिय ग्रामं – इंद्रियों का संग्रह
विनियम्य – उन्हें स्पष्ट रूप से दूर करना
सरल अनुवाद
ममकार के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाली सभी इच्छुक वस्तुओं को पूरी तरह मन से त्यागकर, इंद्रियों को ऐसी सभी इच्छाओं से स्पष्ट रूप से दूर करके….
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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