श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्चिन्नाभ्रमिव नश्यति ।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि ॥
पद पदार्थ
महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाले!
ब्राह्मण: पथि विमूढा : – ब्रह्म प्राप्ति के योग (कर्म योग के मार्ग) से कट जाना
अप्रतिष्ठा:- निश्चित नहीं (स्वर्ग जैसे लक्ष्यों तक पहुँचना आदि)
(इस प्रकार )
उभय विभ्रष्ट: – भोग (सांसारिक आनंद) और मोक्ष (मुक्ति) दोनों से वंचित
चिन्नाभ्रम् इव – छितरे बादल की तरह
कच्चिन् न नश्यति – क्या वह नष्ट नहीं होगा?
सरल अनुवाद
हे शक्तिशाली भुजाओं वाले! [कृष्ण]! क्योंकि ऐसा व्यक्ति, ब्रह्म प्राप्ति के योग (कर्म योग के मार्ग) से कट गया है और इस प्रकार (स्वर्ग आदि तक पहुंचने जैसे लक्ष्यों में) स्थिर नहीं है, दोनों, भोग (सांसारिक आनंद)और मोक्ष (मुक्ति) से वंचित, क्या वह छितरे बादल की तरह नष्ट नहीं हो जाएगा ?
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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