७.२१ – यो यो यां यां तनुं भक्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

<< अध्याय ७ श्लोक २०

श्लोक

यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥

पद पदार्थ

य: य: भक्त: – उन देवतांतरों ( अन्य देवता ) के जो भी भक्त
यां यां तनुं – जिस देवता को भी , जो मेरा शरीर है
श्रद्धया – निष्ठापूर्वक
अर्चितुं – पूजा करना
इच्छति – चाहता है
तस्य तस्य – ऐसे भक्त को
तामेव श्रद्धां – केवल उसी देवता के प्रति विश्वास
अचलां – अटल ( बाधाओं से)
अहम् – मैं
विदधामि – प्रदान करता हूँ

सरल अनुवाद

जिस देवता को भी , जो मेरा शरीर है , उन देवतांतरों ( अन्य देवता ) के जो भी भक्त, निष्ठापूर्वक पूजा करना चाहता है , मैं ऐसे भक्त को केवल उसी देवता के प्रति अटल विश्वास प्रदान करता हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ७ श्लोक २२

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-21/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org