७.३ – मनुष्याणां सहस्रेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

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श्लोक

मनुष्याणां  सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ॥

पद पदार्थ

मनुष्याणां – उन लोगों में से जो शास्त्र सीखने के योग्य हैं
सहस्रेषु – हजारों के बीच
कश्चित – केवल एक
सिद्धये यतति – मुक्ति प्राप्त होने तक लगातार प्रयास करता रहता है
यततां सिद्धानां अपि – उनमें से भी
(सहस्रेषु) कश्चित – एक (हजारों में)
मां – मुझे
तत्वतः- वास्तव में
वेत्ति– जानता है

सरल अनुवाद

हजारों लोगों में से , जो शास्त्र सीखने  योग्य हैं, केवल एक ही मुक्ति प्राप्त होने तक लगातार प्रयास करता रहता है। उन हजारों (जो निरंतर पूर्णता के मार्ग पर चलते हैं) में से केवल एक ही वास्तव में मुझे जानता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुज दासी

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