७.४ – भूमि: आपोऽनलो वायुः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

<< अध्याय ७ श्लोक ३

श्लोक

भूमिरापोऽनलो वायुः खं  मनो बुद्धिरेव  च ।
अहङ्कार  इतीयं  मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥

पद पदार्थ

(ये पांच महान तत्व)
भूमि: -पृथ्वी
आप: – पानी
अनल: -अग्नि
वायु: – हवा
खं – आकाश
मन: – मन (और अन्य इंद्रियाँ)
बुद्धि: – महान (महान तत्व)
अहङ्कार: च – और अहङ्कार ( जो मूल प्रकृति को दर्शाता है)
इति – ये
अष्टधा भिन्ना – आठ श्रेणियों में
इयं प्रकृति: – यह भौतिक प्रकृति
मे एव – मेरा है
(विद्धि – यह जानो)

सरल अनुवाद

यह जान लो  कि यह भौतिक प्रकृति  जो तत्वों की निम्नलिखित आठ श्रेणियों का गठन  है, अर्थात् पाँच महान तत्व, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, मन (और अन्य इंद्रियाँ), महान तत्व और अहङ्कार (जो मूल प्रकृति को दर्शाता है ) और  प्रकृति (प्रारम्भिक पदार्थ)), मेरा है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय ७.५

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-4/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org