८.१० – प्रयाणकाले मनसाऽचलेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ८

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श्लोक

प्रयाणकाले मनसाऽचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥

पद पदार्थ

भक्त्या युक्त: – भक्ति के साथ
योगबलेन – ऐसे भक्ति योग की शक्ति से
अचलेन मनसा – उस हृदय से जो तुच्छ सुखों का पीछा नहीं करे
प्रयाण काले – अंतिम क्षणों में, मृत्यु के समय
भ्रुवो: मध्ये प्राणम् आवेश्य – प्राणवायु को भौहों के बीच में धारण किये
य: जो भी
दिव्यं परं पुरुषं – उस दिव्य परम प्रभु का
सम्यक् अनुस्मरेत् – भली प्रकार ध्यान करता है
स: – वह
तं एव – उसी परम पुरुष को
उपैति – प्राप्त करता है ( इसका तात्पर्य है कि वह उस परमपुरुष के समान संपत्ति प्राप्त करता है )

सरल अनुवाद

…जो कोई भी भक्ति के साथ, ऐसे भक्ति योग की शक्ति से और उस हृदय से जो तुच्छ सुखों का पीछा नहीं करे , अंतिम क्षणों में, मृत्यु के समय, प्राणवायु को भौहों के बीच में धारण किये , उस दिव्य परम प्रभु का ही भली प्रकार ध्यान करता है, वह उसी परम पुरुष को प्राप्त करता है ( इसका तात्पर्य है कि वह उस परमपुरुष के समान संपत्ति प्राप्त करता है )

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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