श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥
पद पदार्थ
यत् – उस
अक्षरं – अक्षरं (अविनाशी)
वेदविद: – वेद के ज्ञाता
वदन्ति – कहते हैं
यत् – उस
इच्छन्त: – इच्छा करते
वीतरागाः यतय: – किसी और वस्तु की इच्छा किए बिना , इन्द्रियों पर नियंत्रण
ब्रह्मचर्यं चरन्ति – ब्रह्मचर्य (अनासक्ति) का पालन करते हैं
यत् विशन्ति – जिसे वे (अपने अभ्यास के परिणामस्वरूप ) प्राप्त करते हैं
तत् पदं – अपने उस वास्तविक स्वरूप के बारे में ( जो पूजनीय है )
ते – तुम्हें
संग्रहेण प्रवक्ष्ये – संक्षेप में बताऊंगा
सरल अनुवाद
मैं तुम्हें अपने उस वास्तविक स्वरूप के बारे में ( जो पूजनीय है ),संक्षेप में बताऊंगा , जिसे वेद के ज्ञाता अक्षरं ( अविनाशी) कहते हैं, जिसकी इच्छा करते हुए वे किसी और वस्तु की इच्छा किए बिना ब्रह्मचर्य (अनासक्ति) का पालन करते हैं, इन्द्रियों पर नियंत्रण पाते हैं और जिसे वे (अपने अभ्यास के परिणामस्वरूप) प्राप्त करते हैं |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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