श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
कविं पुराणम् अनुशासितारम् अणोरणीयांसम् अनुस्मरेद्यः ।
सर्वस्य धातारम् अचिन्त्यरूपम् आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥
पद पदार्थ
कविं – सर्वज्ञ
पुराणं – प्राचीन
अनुशासितारं – समस्त लोकों का नियंता
अणो: अणीयांसं – सूक्ष्म आत्मा से भी लघु
सर्वस्य धातारं – सबका रचयिता
अचिन्त्य रूपं – अकल्पनीय और विलक्षण रूप के साथ
आदित्य वर्णं – सूरज की तरह चमक रहा हो
तमसः परस्तात् – परमपुरुष , जो आदिकालीन पदार्थ ( मूल प्रकृति ) से परे
अनुस्मरेत् – जो ध्यान करता है
सरल अनुवाद
जो उस परमपुरुष का ध्यान करता है, जो सर्वज्ञ, प्राचीन, समस्त लोकों का नियंता है, सूक्ष्म आत्मा से भी लघु , सबका रचयिता , अकल्पनीय और विलक्षण रूप के साथ , सूरज की तरह चमक रहा हो , आदिकालीन पदार्थ ( मूल प्रकृति ) से परे ….
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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