८.९ – कविं पुराणम् अनुशासितारम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ८

<< अध्याय ८ श्लोक ८

श्लोक

कविं पुराणम् अनुशासितारम् अणोरणीयांसम् अनुस्मरेद्यः ।
सर्वस्य धातारम् अचिन्त्यरूपम् आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥

पद पदार्थ

कविं – सर्वज्ञ
पुराणं – प्राचीन
अनुशासितारं – समस्त लोकों का नियंता
अणो: अणीयांसं – सूक्ष्म आत्मा से भी लघु
सर्वस्य धातारं – सबका रचयिता
अचिन्त्य रूपं – अकल्पनीय और विलक्षण रूप के साथ
आदित्य वर्णं – सूरज की तरह चमक रहा हो
तमसः परस्तात् – परमपुरुष , जो आदिकालीन पदार्थ ( मूल प्रकृति ) से परे
अनुस्मरेत् – जो ध्यान करता है

सरल अनुवाद

जो उस परमपुरुष का ध्यान करता है, जो सर्वज्ञ, प्राचीन, समस्त लोकों का नियंता है, सूक्ष्म आत्मा से भी लघु , सबका रचयिता , अकल्पनीय और विलक्षण रूप के साथ , सूरज की तरह चमक रहा हो , आदिकालीन पदार्थ ( मूल प्रकृति ) से परे ….

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ८ श्लोक १०

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/8-9/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org