८.१९ – भूतग्रामः स एवायम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ८

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श्लोक

भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते |
रात्र्यागमेऽवश :पार्थ प्रभवत्यहरागमे ||

पद पदार्थ

पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
अवश: स एव अयं भूतग्राम: – उन जीवात्माओं का संग्रह जो कर्म से बंधे हैं
(अहरागमे) भूत्वा भूत्वा – (प्रत्येक दिन की शुरुआत में (ब्रह्मा के)) बार-बार सृजन होता है
रात्र्यागमे प्रलीयते – (प्रत्येक रात के शुरुआत में (ब्रह्मा की)) विलीन हो जाता है
अहरागमे प्रभवति – (फिर से) दिन की शुरुआत में सृजन होता है

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! उन जीवात्माओं का संग्रह, जो कर्म से बंधे हैं, बार-बार (ब्रह्मा के प्रत्येक दिन की शुरुआत में) सृजन होता है और (ब्रह्मा की प्रत्येक रात के शुरुआत में) विलीन हो जाता है और (फिर से) ब्रह्मा के दिन की शुरुआत में सृजन होता  है ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुजदासी

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