श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |
यास्यन्त:स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ||
पद पदार्थ
पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
भूतानि – सभी वस्तुएँ
यस्य – जिस परमपुरुष के
अन्तःस्थानि – अन्दर उपस्थित
येन – जिसके द्वारा
सर्वम् इदं – ये सब
ततम् – व्याप्त
स: पर: पुरुष:तु – वह परमपुरुष
अनन्यया भक्त्या – अनन्य भक्ति
लभ्य:- प्राप्त करने योग्य
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! जिस परमपुरुष के अंदर सभी वस्तुएँ उपस्थित हैं, जिससे ये सभी वस्तुएँ व्याप्त हैं, वह परमपुरुष अनन्य भक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/8-22/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org