श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन: |
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ||
पद पदार्थ
भरतर्षभ! – हे भरत वंश के वंशज!
यत्र काले प्रयाता: योगिन: तु – योगी जो विभिन्न साधन अपनाते हैं
आवृत्तिं अनावृत्तिं च – संसार मंडल [भौतिक क्षेत्र] में लौटना और बिना वापस लौटे ब्रह्म को प्राप्त करना
यान्ति – प्राप्त करते हैं
तं कालं – वे प्रकार
वक्ष्यामि – मैं बताऊँगा
सरल अनुवाद
हे भरत वंश के वंशज! मैं तुम्हें वे प्रकार बताऊँगा जिनके द्वारा योगी, जो अलग-अलग साधन अपनाते हैं, संसार मंडल [भौतिक क्षेत्र] में लौट आते हैं और बिना वापस लौटे, ब्रह्म को प्राप्त करते हैं।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/8-23/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org