श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम् |
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ||
पद पदार्थ
धूम:- धुआँ
रात्रि – रात
तथा कृष्ण: – उसी तरह, कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा के बाद शुरू होने वाला अंधेरा पक्ष )
दक्षिणायनं षण्मासा: – दक्षिणायनम् के छह महीने (जुलाई के मध्य से जनवरी के मध्य तक)
तत्र चान्द्रमसं ज्योति: – और फिर चन्द्रमा, प्रकाश (उस व्यक्तित्व, अर्थात उनके अध्यक्ष देवता )
योगी – योगी, जिसने पुण्य कर्म किया है
प्राप्य – पहुँचता है
निवर्तते – और (कर्मभूमि – पृथ्वी पर) लौट आता है
सरल अनुवाद
योगी, जिसने पुण्य कर्म किया है, वह, (उस व्यक्तित्व, अर्थात उनके अध्यक्ष देवता ) धुआँ, रात, अंधेरे पक्ष, दक्षिणायनम के छह महीने और फिर चंद्रमा, प्रकाश तक पहुंचता है, और (कर्म भूमि – पृथ्वी) पर लौटता है|
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