श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते |
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुन : ||
पद पदार्थ
एते शुक्ल कृष्णे गती – ये दो मार्ग अर्थात् अर्चिरादि गती और धूमादि गती
जगत: – (क्रमशः) ज्ञानियों और पुण्यात्माओं के लिए
शाश्वते मते – स्थायी रूप से नियुक्त (श्रुति में)।
एकया – अर्चिरादि गती में, जो इन दोनों में से एक है
अनावृत्तिं याति – व्यक्ति बिना वापसी के लक्ष्य को प्राप्त करता है (अर्थात, ब्रह्म के साथ स्थायी आनंद)।
अन्यया – उसके लिए, जिसने दूसरे, धूमादि गती,का अनुसरण किया
पुन: आवर्तते – फिर से (कर्म भूमि में) लौटता है
सरल अनुवाद
अर्चिरादि गती और धूमादि गती नामक ये दो मार्ग क्रमशः ज्ञानी और पवित्र पुण्यात्माओं के लिए (श्रुति/वेद में) स्थायी रूप से नियुक्त हैं। अर्चिरादि गती में, जो इन दोनों में से एक है, व्यक्ति बिना वापसी के लक्ष्य (अर्थात, ब्रह्म के साथ स्थायी आनंद)को प्राप्त करता है । जिसने दूसरे, अर्थात धूमादि गती का अनुसरण किया, वह फिर से (कर्म भूमि में) लौट आता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुजदासी
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