श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यं यं वाऽपि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेबरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥
पद पदार्थ
कौन्तेय – हे अर्जुन !
अन्ते – अंतिम क्षणों में
यं यं वापि भावं स्मरन् कलेबरं त्यजति – जिस भी अवस्था पर ध्यान करते हुए अपना शरीर त्यागता है
तं तं एव एति – वह उस अवस्था को प्राप्त कर लेता है
( क्योंकि )
सदा तद्भावभावितः – क्या वह हमेशा उस पर ध्यान केंद्रित नहीं रहा ?
सरल अनुवाद
हे अर्जुन ! जब कोई, अंतिम क्षणों में जिस भी अवस्था पर ध्यान करते हुए अपना शरीर त्यागता है , वह उस अवस्था को प्राप्त कर लेता है ( क्योंकि ) क्या वह हमेशा उस पर ध्यान केंद्रित नहीं रहा ?
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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