९.१० – मयाऽध्यक्षेण प्रकृति:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् |
हेतुनाऽनेन कौन्तेय जगद्धि परिवर्तते |

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!
प्रकृति – (मेरा ) मूल प्रकृति (मौलिक पदार्थ)
अध्यक्षेण मया – (उकसाया) मेरे द्वारा (जो भगवान हूँ)
स चराचरं जगत् – वह संसार जिसमें चल और अचल वस्तुएँ हैं
सूयते – बनाता है (जीवात्माओं के कर्मों के अनुसार);
अनेन हेतुना – इस कारण से (मेरे संकल्प (इच्छा) के कारण जो जीवात्माओं के कर्मों द्वारा निर्देशित है)
जगत् – संसार
परिवर्तते हि – बनता है, बढ़ता है और नष्ट होता है

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! मेरे (जो भगवान हूँ) द्वारा (उकसाने के कारण ), मूल पदार्थ उस संसार का निर्माण करता है जिसमें चल और अचल वस्तुएँ हैं।जीवात्माओं के कर्मों द्वारा निर्देशित  मेरे संकल्प के इस कारण से संसार बनता है, बढ़ता है और नष्ट होता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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