९.१५ – ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते |
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ||

पद पदार्थ

अन्ये अपि – कुछ अन्य महात्माओं
ज्ञान यज्ञेन च – (पहले बताए गए कीर्तन आदि के साथ) ज्ञान का यज्ञ
यजन्त: – पूजा
बहुधा पृथक्त्वेन – इस दुनिया की कई [सभी] विभिन्न वस्तुओं को मेरे रूप में
विश्वतोमुखम्  मां – सभी वस्तुएं मेरे प्रकार (गुण) के रूप में हैं
एकत्वेन – एकमात्र होना (कारण चरण के दौरान)
उपासते – ध्यान करें

सरल अनुवाद

कुछ अन्य महात्मा, ज्ञान के यज्ञ में लगे रहते हैं ; इस संसार की विभिन्न वस्तुओं को मेरा रूप और सभी वस्तुओं को मेरा प्रकार मानकर मेरी पूजा करते हैं और मेरा ध्यान करते हैं।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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