९.१६ – अहं क्रतु: अहं यज्ञ:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम् |
मन्त्रोऽहमहमेवाज्यम् अहं अग्नि: अहं हुतम् ||

पद पदार्थ

अहं – मैं
क्रतु: – यज्ञ ( जैसे ज्योतिष्टोमं आदि)
अहं यज्ञ – मैं पंच महायज्ञ हूँ
अहं स्वधा – मैं स्वधा हूँ (जो पित्रुओं (पूर्वजों) को शक्ति देता है)
अहं औषधम् – मैं हविस (यज्ञों में दी जाने वाली भेंट) हूँ
अहं मन्त्र: – मैं मन्त्र हूँ
अहं एव आज्यम – मैं घी आदि प्रसाद हूँ
अहं अग्नि: – मैं अग्नि हूँ (जैसे आह्वनीयं )
अहं हुतम् – मैं होम हूँ (यज्ञ में अग्नि अनुष्ठान)

सरल अनुवाद

मैं यज्ञ (जैसे ज्योतिष्टोमं आदि) हूँ; मैं पंच महायज्ञ हूँ; मैं स्वधा हूँ(जो पित्रुओं (पूर्वजों) को शक्ति देता है); मैं हविस (यज्ञों में दी जाने वाली भेंट) हूँ; मैं मन्त्र  हूँ; मैं घी आदि प्रसाद हूँ; मैं अग्नि हूँ(जैसे आह्वनीयं); मैं होम (यज्ञ में अग्नि अनुष्ठान) हूँ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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