९.३४ – मन्मना भव मद्भक्त:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ||

पद पदार्थ

मन्मना भव – अपना मन निरन्तर मुझमें स्थिर करो
मद्भक्ता भव – (और भी ) मेरे प्रति अधिक प्रेम रखो
मद्याजी भव – (और भी ) मेरी पूजा करो
मां – मुझे
नमस्कुरु – प्रणाम करो
मत् परायण – मुझे अपने परम विश्राम स्थल के रूप में रखो
एवं – इस प्रकार
आत्मानं युक्त्वा – मन/हृदय को प्रशिक्षित करने से
माम् एव एष्यसि – तुम निश्चय ही मुझे प्राप्त करोगे

सरल अनुवाद

अपना मन मुझ पर स्थिर करो | (और भी ) मेरे प्रति अधिक प्रेम रखो | (और भी ) मेरी पूजा करो | मुझे प्रणाम करो | मुझे अपने परम विश्राम स्थल के रूप में रखो | इस प्रकार मन/हृदय को प्रशिक्षित करने से तुम निश्चय ही मुझे प्राप्त करोगे |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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