१४.३ – मम योनिर् महद्ब्रह्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २ श्लोक मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्।संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतकुल के वंशज!योनि: – इस सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हैमम – मेरामहत् – महानब्रह्म यत् – मूल प्रकृति (जिसे ब्रह्मं कहा जाता … Read more

१४.२ – इदं ज्ञानमुपाश्रित्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १ श्लोक इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च।। पद पदार्थ इदं ज्ञानं – इस ज्ञान (जिसे समझाया जाना है)उपाश्रित्य – प्राप्त कर लेते हैंमम साधर्म्यम् – मेरे साथ समानताआगताः – प्राप्त कर लेंगेसर्गे अपि न उपजायन्ते – … Read more

१४.१ – परं भूयः प्रवक्ष्यामि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १३ श्लोक ३४ श्लोक श्री भगवानुवाचपरं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान ने कहापरं – जो (पहले बताये हुए ज्ञान से) भिन्न हैभूयः प्रवक्ष्यामि – मैं पुनः (पहले बताये हुए ज्ञान की व्याख्या … Read more

अध्याय १४ – गुणत्रय विभाग योग या तीन गुणों का विषय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १३ >> अध्याय १५ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/14/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१३.३४ – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: एवं अन्तरं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३३ श्लोक क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: एवं अन्तरं ज्ञानचक्षुषा।भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।। पद पदार्थ एवं – जैसा कि इस अध्याय में बताया गया हैक्षेत्र क्षेत्रज्ञयो: अन्तरं – क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के अंतरभूत प्रकृति मोक्षं च – अमानित्व … Read more

१३.३३ – यथा प्रकाशयत्येकः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३२ श्लोक यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!एक: रविः – सूर्यइमं कृत्स्नं लोकं – सम्पूर्ण जगतयथा प्रकाशयति – जैसे (अपने प्रकाश से) प्रकाशित करता हैतथा – वैसे हीक्षेत्री – शरीरधारी … Read more

१३.३२ – यथा सर्वगतं सौक्ष्म्याद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३१ श्लोक यथा सर्वगतं सौक्ष्म्याद् आकाशं नोपलिप्यते।सर्वत्रावस्थितो देहे तथाऽऽत्मा नोपलिप्यते।। पद पदार्थ आकाशं – आकाशसर्वगतं – सभी में व्याप्त होते हुए भीसौक्ष्म्याद् – सूक्ष्म होने के कारणयथा न उपलिप्यते – उनके गुणों से प्रभावित नहीं होतातथा – उसी प्रकारआत्मा – … Read more

१३.३१ – अनादित्वान् निर्गुणत्वात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३० श्लोक अनादित्वान् निर्गुणत्वात् परमात्माऽयमव्ययः।शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते।। पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!अयं परमात्मा – यह आत्मा (जो शरीर से बड़ा है)शरीरस्थ: – शरीर में रहते हुएअनादित्वात् – क्योंकि वह अनादि है और (किसी समय में) निर्मित … Read more

१३.३० – यदा भूतपृथग्भावम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २९ श्लोक यदा भूतपृथग्भावम् एकस्थम् अनुपश्यति।तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा।। पद पदार्थ भूत पृथग्भावम् – जीवात्माओं और विभिन्न प्रकार के शरीरों जैसे देव, मनुष्य , तिर्यक और स्थावर के संयोजन में विविधताएकस्थम् – एक ही वस्तु (अतार्थ प्रकृति … Read more

१३.२९ – प्रकृत्यैव च कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २८ श्लोक प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः।यः पश्यति तथाऽऽत्मानम् अकर्तारं स पश्यति।। पद पदार्थ सर्वशः कर्माणि – सभी कर्मप्रकृता एव क्रियमाणानि – शरीर द्वारा किये जाते हैं, जो कि पदार्थ का प्रभाव हैतथा – इसी प्रकारआत्मानं – आत्माअकर्तारं च – … Read more