१६.१२ – आशापाशशतैर्बद्धाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ११ श्लोक आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।। पद पदार्थ (आसुरी लोग)आशा पाश शतै: बद्धाः – इच्छाओं के नाम की सैकड़ों रस्सियों से बंधे होने के कारणकाम क्रोध परायणाः – काम तथा क्रोध में भली-भांति संलग्न होकरकाम भोगार्थम् – अपनी वासना की पूर्ति … Read more

१६.११ – चिन्तामपरिमेयां च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १० श्लोक चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः।। पद पदार्थ (आसुरी लोग)अपरिमेयां – असीमितप्रलयान्तां च – विद्यमान तथा प्रलयकाल तक प्राप्त होने वालीचिन्तां – चिंताउपाश्रिताः – करते हुएकामोप भोग परमा: – वासना को ही सर्वोच्च लक्ष्य मानकरएतावत् इति निश्चिताः – ‘यही … Read more

१६.१० – काममाश्रित्य दुष्पूरं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ९ श्लोक काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।मोहाद्गृहीत्वाऽसद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।। पद पदार्थ (राक्षसी लोग)दुष्पूरं – अतृप्तकामं – इच्छाओंआश्रित्य – पकड़कर (उन्हें पूरा करने के लिए)मोहात् – अज्ञान के कारणअसद्ग्राहान् – अवैध तरीकों से अर्जित धनगृहीत्वा – को पकड़करअशुचि व्रताः – शास्त्रों में स्वीकृत नहीं किए … Read more

१६.९ – एतां दृष्टिम् अवष्टभ्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ८ श्लोक एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽशुभा:।। पद पदार्थ (राक्षसी लोग)एतां दृष्टिं – इस कुटिल दृष्टिअवष्टभ्य – को धारण करकेनष्टात्मान: – आत्मा (जो शरीर से भिन्न है) को न देखकरअल्प बुद्धयः – क्षुद्रबुद्धि वाले होकर (जो शरीर ज्ञेय है और … Read more

१६.८ – असत्यम् अप्रतिष्ठं ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ७ श्लोक असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहेतुकम्।। पद पदार्थ ते – वे राक्षसी लोगजगत् – यह जगत्असत्यम् अप्रतिष्ठम् अनीश्वरम् आहु: – नहीं कहते कि, ” ब्रह्म से व्याप्त है, ब्रह्म द्वारा ही धारण किया जाता है तथा ब्रह्म द्वारा ही नियंत्रित … Read more

१६.७ – प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ६ श्लोक प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।। पद पदार्थ असुराः जना: – जो लोग आसुरी श्रेणी में हैंप्रवृत्तिं च – ऐश्वर्य (भौतिक संपत्ति, नियंत्रण)निवृत्तिं च – और मोक्ष दोनों का साधन … Read more

१६.६ – द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ५ श्लोक द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!अस्मिन् लोके – [भौतिकवादी] कर्मों की इस दुनिया मेंभूत सर्गौ – प्राणियों की रचनादैव: – देवता से संबंधितआसुर एव च … Read more

१६.५ – मा शुचः सम्पदं दैवीम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ४.५ श्लोक मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।। पद पदार्थ पाण्डव – हे पाण्डुपुत्र!मा शुचः – शोक मत करो (यह सोचकर कि “क्या मैं असुर योनि में जन्मा हूँ?”)दैवीं सम्पदम् अभिजात: असि – तुम देवताओं की सम्पत्ति को पूर्ण करने के … Read more

१६.४.५ – दैवी सम्पद्विमोक्षाय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ४ श्लोक दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता। पद पदार्थ दैवी सम्पत् – देवताओं का धन (अर्थात, मेरे आदेशों का पालन करना)विमोक्षाय मता – संसार से मुक्ति की ओर ले जाता हैआसुरी (सम्पत्) – असुरों का धन (अर्थात् मेरी आज्ञा का उल्लंघन … Read more

१६.४ – दम्भो दर्पोऽभिमानश्च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक ३ श्लोक दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!आसुरीं सम्पदम् अभिजातस्य – जिनके पास असुरों का धन है (अर्थात भगवान की आज्ञा का उल्लंघन करना)दम्भ: – प्रसिद्धि पाने के लिए धर्म का पालन … Read more