१०.२ – न मे विदुः सुरगणाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक १ श्लोक न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥ पद पदार्थ सुरगणाः – देवताओं का समूहमे प्रभवं – मेरी महानतान विदुः – नहीं जानतेमहर्षयः – महान ऋषियोंन विदुः – भी नहीं जानतेहि – यह … Read more

१०.१ – भूय एव महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय ९ श्लोक ३४ श्लोक श्रीभगवानुवाचभूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः।यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥ पद पदार्थ श्रीभगवानुवाच – श्री भगवान ने कहामहाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाले!प्रीयमाणाय ते – तुम जो (मेरी महिमा सुनकर)आनंदित होहित काम्यया – तुम्हारी भलाई के लिए … Read more

अध्याय १० – विभूति विस्तार योग (या) दिव्य महिमा की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<अध्याय ९ >> अध्याय ११ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/10/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

९.३४ – मन्मना भव मद्भक्त:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३३ श्लोक मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: || पद पदार्थ मन्मना भव – अपना मन निरन्तर मुझमें स्थिर करोमद्भक्ता भव – (और भी ) मेरे प्रति अधिक प्रेम रखोमद्याजी भव – (और भी ) मेरी पूजा … Read more

९.३३ – किं पुन: ब्राह्मणा: पुण्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३२ श्लोक किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा |अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् || पद पदार्थ पुण्या: – पूर्व पुण्य कर्मों के कारण ऐसा जन्म हुआ हैब्राह्मणा: – ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग )राजर्षय तथा – राजर्षि ( राजसी साधु )भक्ता: – यदि … Read more

९.३२ – मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३१ श्लोक मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: |स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् || पद पदार्थ पार्थ – हे कुंतीपुत्र !स्त्रिय: – औरतवैश्या – वैश्य ( व्यापारी वर्ग )तथा शूद्रा: – क्षूद्र ( श्रमिक वर्ग ) आदि भीपापयोनय … Read more

९.३१ – क्षिप्रं भवति धर्मात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३० श्लोक क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति |कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति || पद पदार्थ (यद्यपि जो मेरी भक्ति में लगा है, उसका आचरण बुरा हो )क्षिप्रं – शीघ्र हीधर्मात्मा भवति – वह ( अपनी बाधाओं को दूर करके … Read more

९.३० – अपि चेत् सुदुराचारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २९ श्लोक अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् |साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: || पद पदार्थ सु दुराचार अपि – भले ही किसी के लक्षण/आचरण बहुत ही निम्न होमां – मुझ परअनन्यभाक् – बिना किसी अन्य लाभ की इच्छा केभजते चेत् … Read more

९.२९ – समोऽहं सर्वभूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २८ श्लोक समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: |ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् || पद पदार्थ अहं – मैंसर्वभूतेषु – विभिन्न प्रजातियों के सभी प्राणियों के लिएसम: – समान (जो कोई मेरी शरण लेना चाहता … Read more

९.२८ – शुभाशुभफलै: एवं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २७ श्लोक शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: |संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि || पद पदार्थ एवं – इस प्रकारसंन्यास योग युक्तात्मा – संन्यास योग ( जैसे पहले बताया गया है, सभी कार्यों को मुझे समर्पित करना ) में लगे दिल से कर्म में संलग्न … Read more