११.९ – एवं उक्त्वा ततो राजन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ८ श्लोक संजय उवाच एवमुक्त्वा ततो राजन् महायोगेश्वरो हरि: |दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् || पद पदार्थ संजय उवाच – संजय ने कहाराजन् – हे राजा धृतराष्ट्र!महा योगेश्वर: हरि: – कृष्ण भगवान, जो अद्भुत पहलुओं के साथ हैंएवम् उक्त्वा – ऐसा … Read more

११.८ – न तु माम् शक्ष्यसे द्रष्टुम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ७ श्लोक न तु मां शक्ष्यसे द्रष्टुं अनेनैव स्वचक्षुषा |दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम् || पद पदार्थ अनेन एव स्व चक्षुषा – तुम्हारी इन आँखों सेमां द्रष्टुं तु न शक्ष्यसे – तुम मुझे नहीं देख सकतेदिव्यं चक्षु:- दिव्य … Read more

११.७ – इहैकस्थं जगत् कृत्स्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ६ श्लोक इहैकस्थं जगत् कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् |मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि || पद पदार्थ गुडाकेश – हे नींद को जीतने वाले!इह मम देहे – यहाँ मेरे इस स्वरुप मेंएकस्थम् – एक भाग मेंस चराचरं कृत्स्नं जगत् – भौतिक क्षेत्र … Read more

११.६ – पश्यादित्यान् वसून् रुद्रान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ५ श्लोक पश्यादित्यान् वसून् रुद्रान् अश्विनौ मरुत: तथा |बहून्यदृष्ट पूर्वाणि पश्याश्चर्याणि  भारत || पद पदार्थ भारत – हे भरत वंश के वंशज!आदित्यान् – (१२) आदित्यों (अदिति के पुत्रों)वसून् – (८) वसुओंरुद्रान् – (११) रुद्रोंअश्विनौ – (२) अश्विनि देवताओंतथा मरुत:- (४९) … Read more

११.५ – पश्य मे पार्थ रूपाणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ४ श्लोक श्री भगवान उवाच पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश : | नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णा कृतीनि च || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – भगवान कृष्ण ने कहापार्थ – हे कुन्तीपुत्र!मे – मेरा रूपाणी – रूपों (जो हर जगह उपस्थित … Read more

११.४ – मन्यसे यदि तच्छक्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ३ श्लोक मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो |योगेश्वर ततो  मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् || पद पदार्थ योगेश्वर – हे शुभ गुणों वाले!प्रभो – हे सर्वेश्वर! (सभी के भगवान)तत् – तुम्हारा स्वरूपमया – मेरे द्वाराद्रष्टुम् शक्यम् इति – देखा जा सकता … Read more

११. ३ – एवम् एतद्यथाऽऽत्थ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक २ श्लोक एवमेतद्यथाऽऽत्थ त्वम् आत्मानं परमेश्वर |द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं  पुरुषोत्तम || पद पदार्थ परमेश्वर – हे सर्वेश्वर! (सभी के भगवान)पुरुषोत्तम – हे पुरुषोत्तम! (सभी में सबसे महान)यथा त्वं आत्मानं आत्थ – जिस प्रकार तुमने अपने बारे में समझायाएवम् एतत् -जो … Read more

११.२ – भवाप्ययौ हि भूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक १ श्लोक भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो  मया |त्वत्त : कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् | पद पदार्थ कमल पत्राक्ष – हे कमल के पंखुड़ी जैसी आँखों वाले भगवान!त्वत्त – तुमसे (जो परमात्मा हैं) (अस्तित्व में आना)भूतानां – सभी पहलुएँभवाप्ययौ- सृजन और … Read more

११.१ – मदनुग्रहाय परमम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय १० श्लोक ४२ श्लोक अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परमं गुह्यं अध्यात्मसंज्ञितम् |यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ||  पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहामदनुग्रहाय – मुझ पर दयालुतापूर्वकपरमं गुह्यं- अत्यंत गुप्तअध्यात्म संज्ञितं वच: – निर्देश (पहले छह अध्यायों में) जिसमें आत्मा के … Read more

अध्याय ११ – विश्वरूप संदर्शन योग या ब्रह्माण्डीय दृष्टि की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १० भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >> अध्याय १२ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/11/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org