१७.१९ – मूढग्राहेणात्मनो यत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १८ श्लोक मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ मूढग्राहेण – मूर्ख व्यक्तियों की प्रबल इच्छा के कारणआत्मन: पीडया – स्वयं को कष्ट देनेपरस्य उत्सादनार्थं वा – दूसरों को कष्ट देनेयत् तपः क्रियते – जो तपस्या की जाती हैतत् … Read more

१७.१८ – सत्कार मान पूजार्थं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १७ श्लोक सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्।क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्।। पद पदार्थ सत्कार मान पूजार्थं – जो सम्मान, प्रशंसा और पूजा पाने के लिएदम्भेन च एव – तथा दिखावे के लिएयत् तप: क्रियते – तप किया जाता हैतत् – … Read more

१७.१७ – श्रद्धया परया तप्तं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १६ श्लोक श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत् त्रिविधं नरैः।अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते।। पद पदार्थ अफलाकाङ्क्षिभि: – जो कर्मफल से विरक्त हैंयुक्तैः – इस विचार से करते हैं कि यह परमात्मा की पूजा का ही एक अंग हैनरैः – उन पुरुषों द्वारापरया श्रद्धया … Read more

१७.१६ – मनःप्रसादः सौम्यत्वं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १५ श्लोक मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।। पद पदार्थ मनः प्रसादः – मन को साफ और क्रोध आदि से रहित रखनासौम्यत्वं – दूसरों के हित के बारे में सोचनामौनं – मन के माध्यम से वाणी पर नियंत्रण रखनाआत्म विनिग्रहः – मन … Read more

१७.१५ – अनुद्वेगकरं वाक्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १४ श्लोक अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।। पद पदार्थ अनुद्वेगकरं – जो दूसरों में द्वेष उत्पन्न न करेसत्यं – जो सत्य होप्रिय हितं च – जो मधुर हो तथा कल्याण करने वाले होयत् वाक्यं – … Read more

१७.१४ – देवद्विजगुरुप्राज्ञ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १३ श्लोक देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचम् आर्जवम् |ब्रह्मचर्यम् अहिंसा च शारीरं तप उच्यते || पद पदार्थ देव द्विज गुरु प्राज्ञ पूजनं – देवताओं , द्विजों(ब्राह्मणों), गुरु, विद्वानों की पूजा करनाशौचम्- ऐसे कार्य जो पवित्रता की ओर ले जाते हैं (जैसे पवित्र नदियों … Read more

१७.१३ – विधिहीनम् असृष्टान्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १२ श्लोक विधिहीनम् असृष्टान्नं  मन्त्रहीनम् अदक्षिणम् |श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते || पद पदार्थ विधिहीनम् – (ब्राह्मणों की) अनुमति से रहितअसृष्टान्नं – अधर्म से अर्जित सामग्री से युक्तमंत्रहीनम् – उचित मंत्रों से रहितअदक्षिणम् – दक्षिणा से (ब्राह्मण आदि को) रहित श्रद्धा … Read more

१७.१२ – अभिसन्धाय तु फलम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ११ श्लोक अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थं अपि चैव य: |इज्यते भरतश्रेष्ठ तं  यज्ञं विद्धि राजसम् || पद पदार्थ भरत श्रेष्ठ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!फलम् अभिसन्धाय तु – भौतिक लाभ की इच्छा सेदम्भार्थं अपि च एव – केवल दिखावे … Read more

१७.११ – अफलाकाङ्क्षिभिर् यज्ञो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १० श्लोक अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते |यष्टव्यमेवेति मन: समाधाय स सात्त्विक: || पद पदार्थ अफलाकाङ्क्षिभि: – उन लोगों द्वारा जिन्हें परिणाम की कोई अपेक्षा नहीं हैविधिदृष्ट: – जैसे शास्त्र द्वारा निर्धारित हैयष्टव्यमेव इति – यह सोचकर कि यज्ञ अवश्य करना … Read more

१७.१० – यातयामं गतरसं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ९ श्लोक यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् |उच्छिष्टमपि  चामेध्यं  भोजनं तामसप्रियम् || पद पदार्थ यात यामं – बासीगत रसं – प्राकृतिक स्वाद खो चुकापूति – बदबूदारपर्युषितं च – लंबे समय तक रखे रहने के कारण स्वाद बदल जानाउच्छिष्टम् – … Read more